केशरी अध्याय 2: जलियांवाला बाग की अनकही कहानी – एक विशेष समीक्षा

Kesari Chapter 2

18 अप्रैल, 2025 को प्रदर्शित Kesari Chapter 2 : जलियांवाला बाग की अनकही कहानी एक ऐसी हिंदी फिल्म है, जो इतिहास और नाटक का शानदार मिश्रण प्रस्तुत करती है। 2 घंटे 15 मिनट की इस फिल्म को करण सिंह त्यागी ने निर्देशित किया है, और इसमें अक्षय कुमार, आर. माधवन, और अनन्या पांडे जैसे सितारे मुख्य भूमिकाओं में हैं।

यह फिल्म 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद की घटनाओं को एक अदालती नाटक के रूप में दर्शाती है, जिसमें वकील सी. शंकन नायर (अक्षय कुमार) ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सत्य की खोज और जवाबदेही की लड़ाई लड़ते हैं। यह लेख इस फिल्म की गहन समीक्षा करता है, जिसमें इसकी कहानी, अभिनय, तकनीकी पहलू, और ऐतिहासिक महत्व को विस्तार से समझाया गया है।

कहानी का सार : Kesari Chapter 2

केशरी अध्याय 2 पहली फिल्म केशरी (2019) की युद्ध-केंद्रित कहानी से हटकर एक अदालती नाटक की ओर बढ़ती है। यह फिल्म सी. शंकन नायर के पौत्र रघु पलट और पुष्पा पलट की पुस्तक द केस दैट शूक द एम्पायर से प्रेरित है। कहानी 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद शुरू होती है, जब अमृतसर में एक शांतिपूर्ण सभा पर ब्रिटिश सेना ने गोलीबारी की, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए। इस घटना ने पूरे भारत में आक्रोश फैलाया और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।

फिल्म में शंकन नायर, एक प्रतिभाशाली और साहसी वकील, ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अदालत में खड़े होते हैं, ताकि इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए। उनके सामने चुनौती है जनरल रेजिनाल्ड डायर (साइमन पैस्ले डे), जिन्होंने गोलीबारी का आदेश दिया था, और एक चतुर एंग्लो-इंडियन वकील नेविल मैकिन्ले (आर. माधवन)। शंकन की सहयोगी वकील दिलरीत गिल (अनन्या पांडे) इस कानूनी लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कहानी ब्रिटिश साम्राज्य के भ्रष्टाचार, भारतीयों के प्रति उनके तिरस्कार, और देश में बढ़ते क्रांतिकारी भाव को बखूबी दर्शाती है।

कथानक और भावनात्मक प्रभाव

फिल्म की शुरुआत जलियांवाला बाग नरसंहार के हृदयविदारक दृश्यों से होती है, जो दर्शकों के मन को उद्वेलित कर देती है। निर्देशक करण सिंह त्यागी और लेखक अमृतपाल बिंद्रा ने इन दृश्यों को इतनी संवेदनशीलता से चित्रित किया है कि दर्शक उस दौर के दर्द और अन्याय को गहराई से महसूस करते हैं। नरसंहार का पुनर्जनन न केवल ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, बल्कि यह भावनात्मक रूप से भी प्रभावशाली है।

कथानक का केंद्रीय हिस्सा अदालती संघर्ष है, जो धीरे-धीरे गति पकड़ता है। शुरुआती हिस्सों में कुछ दृश्य, जैसे शंकन का क्रांतिकारी किरपाल सिंह (जयप्रीत सिंह) को सजा दिलाने में योगदान और जनरल डायर के खिलाफ प्रारंभिक सुनवाई, थोड़े धीमे लग सकते हैं। लेकिन जब शंकन और नेविल मैकिन्ले के बीच अदालत में टकराव शुरू होता है, तो कहानी रोमांचक हो उठती है। यह टकराव बौद्धिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर दर्शकों को बांधे रखता है।

फिल्म का एक और महत्वपूर्ण पहलू है शंकन का वैचारिक परिवर्तन। वह शुरू में ब्रिटिश ताज के प्रति निष्ठावान हैं, लेकिन नरसंहार के बाद उनका राष्ट्रवादी भाव जागृत होता है। हालांकि, यह परिवर्तन कुछ हद तक जल्दबाजी भरा लगता है, और इसे और गहराई से दिखाया जा सकता था। फिर भी, कहानी का ताना-बाना इतना मजबूत है कि यह छोटी-मोटी कमियां दब जाती हैं।

अभिनय: सितारों की चमक

अक्षय कुमार शंकन नायर के किरदार में अपनी अभिनय क्षमता का शानदार प्रदर्शन करते हैं। उनका किरदार एक ऐसे वकील का है, जो बुद्धिमानी और साहस के साथ साम्राज्य की नींव को चुनौती देता है। अक्षय की संवाद अदायगी और भाव-भंगिमाएं उनके किरदार को जीवंत बनाती हैं। खासकर अदालती दृश्यों में उनकी तीव्रता और आत्मविश्वास देखने लायक है।

आर. माधवन नेविल मैकिन्ले के रूप में उतने ही प्रभावशाली हैं। उनका किरदार एक चतुर और संयमित वकील का है, जो ब्रिटिश हितों की रक्षा करता है। माधवन अपने नियंत्रित लेकिन तीक्ष्ण अभिनय से इस किरदार को यादगार बनाते हैं। शंकन और नेविल के बीच का बौद्धिक द्वंद्व फिल्म का एक मुख्य आकर्षण है।

अनन्या पांडे दिलरीत गिल के रूप में सुखद आश्चर्य देती हैं। उनका किरदार एक युवा वकील का है, जो शुरू में अदालत में हिचकिचाती है, लेकिन धीरे-धीरे आत्मविश्वास के साथ एक उग्र प्रश्नकर्ता बन जाती है। अनन्या ने इस परिवर्तन को बहुत ही स्वाभाविक और विश्वसनीय ढंग से दर्शाया है। खासकर एक महत्वपूर्ण क्रॉस-एग्जामिनेशन दृश्य में उनकी तीव्रता प्रभावशाली है।

साइमन पैस्ले डे जनरल डायर के रूप में खलनायक की भूमिका में उत्कृष्ट हैं। उनका किरदार क्रूर और जटिल है, और फिल्म में उनके बचपन के आघात—हकलाने के लिए तंग किए जाने और अपने पिता से भारतीयों के प्रति घृणा ग्रहण करने—को संक्षेप में लेकिन प्रभावी ढंग से दिखाया गया है। यह उनके किरदार को गहराई देता है।

कृष राव परगट सिंह के रूप में एक युवा लड़के की भूमिका में दिल को छू लेते हैं। वह नरसंहार में अपनी मां और बहन को खो देता है और फिर भी साहस के साथ सच के लिए आवाज उठाता है। उनकी मासूमियत और दृढ़ता दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।

तकनीकी उत्कृष्टता

फिल्म की तकनीकी विशेषताएं इसे और भी प्रभावशाली बनाती हैं। रीता घोष की प्रोडक्शन डिजाइन स्वतंत्रता-पूर्व भारत को जीवंत करती है। बाजार, सड़कें, और अदालत के दृश्य इतने प्रामाणिक लगते हैं कि दर्शक खुद को उस युग में महसूस करते हैं। देबोजीत रे का छायांकन कहानी के भावनात्मक और नाटकीय क्षणों को खूबसूरती से कैद करता है। खासकर नरसंहार के दृश्यों में उनका कैमरा कार्य दर्शकों को उस त्रासदी का हिस्सा बना देता है।

शाश्वत सचदेव का गीत ओ शेरा और अजीम दयानी का पृष्ठभूमि संगीत कहानी को एक प्रेरक और उत्साहपूर्ण स्तर पर ले जाता है। संगीत न केवल भावनाओं को उभारता है, बल्कि ऐतिहासिक माहौल को भी गहराई देता है।

करण सिंह त्यागी का निर्देशन संतुलित और प्रभावी है। उन्होंने नरसंहार जैसे संवेदनशील विषय को अतिनाटकीयता से बचाते हुए प्रस्तुत किया है। उनका दृष्टिकोण कहानी को ऐतिहासिक तथ्यों और मानवीय भावनाओं के बीच संतुलन बनाए रखता है।

ऐतिहासिक महत्व और प्रासंगिकता

जलियांवाला बाग नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और दुखद अध्याय है। यह फिल्म इस घटना को न केवल एक ऐतिहासिक तथ्य के रूप में, बल्कि एक मानवीय त्रासदी के रूप में प्रस्तुत करती है। यह उस दौर के ब्रिटिश शासन के भ्रष्टाचार और भारतीयों के प्रति उनके अमानवीय रवैये को उजागर करती है। साथ ही, यह क्रांतिकारी भावनाओं के उदय को भी दर्शाती है, जो बाद में स्वतंत्रता आंदोलन का आधार बना।

फिल्म का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह उस कानूनी लड़ाई पर प्रकाश डालती है, जो इतिहास में कम चर्चित रही। सी. शंकन नायर का ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खड़ा होना और उनके अत्याचारों को दुनिया के सामने लाना एक ऐसी कहानी है, जो प्रेरणा देती है। यह फिल्म नई पीढ़ी को इस ऐतिहासिक घटना से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

कमियां और सुधार की गुंजाइश

हालांकि फिल्म कई मायनों में उत्कृष्ट है, लेकिन इसमें कुछ कमियां भी हैं। शुरुआती हिस्सों में कहानी की गति थोड़ी धीमी है, जो कुछ दर्शकों को बेचैन कर सकती है। शंकन के वैचारिक परिवर्तन को और गहराई से दर्शाया जा सकता था, ताकि उनका राष्ट्रवादी बनना अधिक विश्वसनीय लगे। इसके अलावा, कुछ सहायक किरदारों को और विकसित किया जा सकता था, ताकि कहानी में और गहराई आती।

निष्कर्ष

केशरी अध्याय 2: जलियांवाला बाग की अनकही कहानी एक ऐसी फिल्म है, जो इतिहास, नाटक, और मानवीय भावनाओं का शानदार संगम है। यह जलियांवाला बाग नरसंहार की त्रासदी को संवेदनशीलता के साथ दर्शाती है और उस कानूनी लड़ाई को उजागर करती है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी। अक्षय कुमार, आर. माधवन, और अनन्या पांडे के शानदार अभिनय, रीता घोष की प्रामाणिक प्रोडक्शन डिजाइन, और शाश्वत सचदेव के प्रेरक संगीत ने इस फिल्म को अविस्मरणीय बना दिया है।

यह फिल्म न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को जीवंत भी करती है। यदि आप ऐतिहासिक नाटकों और प्रेरक कहानियों के शौकीन हैं, तो यह फिल्म आपके लिए अवश्य देखने योग्य है। यह न केवल आपके मन को उद्वेलित करेगी, बल्कि आपको उस साहस और संघर्ष की याद दिलाएगी, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आकार दिया।

रेटिंग: 3.5/5
अवश्य देखें: ऐतिहासिक तथ्यों और शानदार अभिनय का अनुभव लेने के लिए।


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