🔔 विदेशी छात्रों के लिए सबक: रिसर्च में समय और ज़िम्मेदारी की अहमियत

चंडीगढ़, 10 अप्रैल 2025 – iranian student phd case : पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग से पीएचडी कर रही ईरानी नागरिक मेहरी मालेकी डिजीचेह को अब अपनी रिसर्च पूरी करने का और कोई अवसर नहीं मिलेगा।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि 13 साल में पीएचडी पूरी न कर पाने और बार-बार अवसर मिलने के बावजूद थीसिस न जमा कर पाने पर अब कोई नया मौका नहीं दिया जा सकता। iranian student phd case 2025 verdict

यह मामला न केवल कानूनी नजरिए से, बल्कि भावनात्मक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से भी चर्चा का विषय बन गया है। यह प्रश्न खड़ा करता है – क्या किसी छात्र को अनिश्चित काल तक अवसर दिया जाना चाहिए या नियमों की सख्ती जरूरी है? iranian student phd case 2025 verdict

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पीएचडी की शुरुआत: उम्मीदों भरी राह

iranian student phd case : वर्ष 2012 में ईरानी छात्रा मेहरी मालेकी को पंजाब यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में पीएचडी कोर्स में दाख़िला मिला। एक विदेशी छात्रा के लिए यह सफर न केवल अकादमिक, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक स्तर पर भी चुनौतीपूर्ण होता है। iranian student phd case 2025 verdict

भारत आने के बाद, उन्होंने रिसर्च विषय पर कार्य शुरू किया और यूनिवर्सिटी के निर्देशों के अनुसार उन्हें 8 वर्षों के भीतर शोध कार्य पूरा करना था। यह समय-सीमा यूजीसी द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार तय की गई थी। iranian student phd case 2025 verdict


कोविड और व्यक्तिगत चुनौतियाँ: देरी के कारण

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मेहरी मालेकी ने बार-बार समय सीमा बढ़वाने की मांग की। उन्होंने कोविड-19 महामारी, स्वास्थ्य संबंधी कारणों और अन्य व्यक्तिगत समस्याओं का हवाला दिया।

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इन दलीलों को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी उदारता दिखाते हुए उन्हें वर्ष 2022 में ‘गोल्डन चांस’ के तहत 30 दिसंबर तक का अंतिम अवसर प्रदान किया। लेकिन इस मौके का भी वे पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पाईं।


हाईकोर्ट में याचिका: कई माँगें और एक उम्मीद

मेहरी मालेकी ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल कीं, जिनमें उन्होंने निम्नलिखित मांगें कीं:

  • पीएचडी की थीसिस जमा करने के लिए एक और अंतिम अवसर दिया जाए
  • वीजा की अवधि एक साल के लिए बढ़ाई जाए
  • ओवर स्टे (भारत में तय सीमा से अधिक रुकने) पर लगाए गए जुर्माने को माफ किया जाए
  • विश्वविद्यालय द्वारा हॉस्टल की सुविधा फिर से दी जाए
  • भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की अनुमति दी जाए

विश्वविद्यालय का रुख: पर्याप्त अवसर दिए गए

पंजाब यूनिवर्सिटी ने कोर्ट में दलील दी कि छात्रा को पर्याप्त अवसर दिए गए हैं और उसके बावजूद वह थीसिस समय पर जमा नहीं कर पाई। यूनिवर्सिटी की 6 मार्च 2025 को हुई मीटिंग में यह तय किया गया कि एक बार फिर 15 दिन का समय दिया जाए।

इस दौरान छात्रा को डिजिटल लाइब्रेरी और आवश्यक दस्तावेजों की एक्सेस भी दी गई। लेकिन अंतिम तारीख से एक दिन पहले उन्होंने केवल गाइड को रिसर्च का ड्राफ्ट भेजा – जबकि थीसिस जमा करने की औपचारिक प्रक्रिया यूनिवर्सिटी के प्राधिकारी के पास होती है।


हाईकोर्ट का फैसला: अब और मौका नहीं : iranian student phd case 2025 verdict

हाईकोर्ट ने छात्रा की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि:

“बार-बार मिले अवसरों के बावजूद छात्रा अपनी शैक्षणिक जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पाई है। 13 वर्षों में पर्याप्त समय दिया गया। अब उसे और कोई अवसर नहीं दिया जा सकता।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर वह भारत में शरणार्थी निवास की मांग करना चाहती हैं, तो इसके लिए भारत सरकार के समक्ष स्वतंत्र याचिका दायर कर सकती हैं।


यूजीसी के नियम: समय की सीमा स्पष्ट : iranian student phd case 2025 verdict

यूजीसी की 2022 गाइडलाइन के अनुसार:

  • पीएचडी 6 वर्षों में पूरी करनी होती है।
  • विशेष परिस्थिति में दो साल की अतिरिक्त छूट दी जा सकती है।
  • महिला शोधार्थियों को भी दो साल की अतिरिक्त छूट का प्रावधान है।
  • पुनः पंजीकरण के बिना समय सीमा नहीं बढ़ाई जा सकती।

यूजीसी के तत्कालीन चेयरमैन एम. जगदीश कुमार ने स्पष्ट कहा था कि पीएचडी की समय सीमा तय करने से छात्र कम उम्र में रिसर्च पूरी कर पाएंगे और नए विद्यार्थियों को अवसर मिलेंगे।


शिक्षा बनाम व्यवस्था: बहस के दो पहलू : iranian student phd case 2025 verdict

यह मामला केवल एक छात्रा की कहानी नहीं है, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था और मानवीय पक्ष के बीच की खाई को भी उजागर करता है। एक ओर जहां कोर्ट और विश्वविद्यालय नियमों के पालन पर जोर दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सवाल यह भी है – क्या एक विदेशी छात्रा को थोड़ी और राहत मिलनी चाहिए थी?

  • क्या कोविड जैसे वैश्विक संकटों को ‘असाधारण परिस्थिति’ मानते हुए कुछ और समय नहीं दिया जा सकता था?
  • क्या एक शरणार्थी छात्रा की परिस्थितियों को ज्यादा मानवीय नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए था?

इन सवालों के जवाब शायद कानूनी किताबों में न हों, लेकिन समाज जरूर इन पर विचार कर सकता है।


📚 विदेशी छात्रों के लिए सबक: समय की कद्र जरूरी : iranian student phd case 2025 verdict

iranian student phd case 2025 verdict : मेहरी मालेकी की यह कहानी सिर्फ एक छात्रा की हार नहीं, बल्कि उन सभी विदेशी विद्यार्थियों के लिए एक चेतावनी है जो भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना लेकर आते हैं।

भारत जैसे देश में जहां शिक्षा को सेवा के रूप में देखा जाता है, वहां विश्वविद्यालय बार-बार अवसर देकर छात्रों को आगे बढ़ने का मौका देते हैं। लेकिन अगर कोई छात्र बार-बार मिले मौकों का लाभ नहीं उठा पाता, तो यह न केवल उसके भविष्य के लिए बल्कि पूरे शैक्षणिक सिस्टम के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है।

भारत सरकार और UGC की ओर से दी गई समयसीमा किसी को बाधित करने के लिए नहीं, बल्कि शोध की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए होती है।

मेहरी को दिए गए ‘गोल्डन चांस’ जैसी विशेष छूट हर छात्र को नहीं मिलती। ऐसे में अगर बार-बार मिले अवसरों के बाद भी कोई रिसर्च पूरी नहीं कर पाता, तो यह साबित करता है कि उस छात्र की प्राथमिकताएं कहीं और हैं।

यह मामला भविष्य के छात्रों के लिए एक उदाहरण बन सकता है कि रिसर्च और उच्च शिक्षा में केवल प्रवेश लेना ही नहीं, बल्कि समय पर जिम्मेदारियों को निभाना भी उतना ही ज़रूरी है।


निष्कर्ष: क्या सिस्टम बदलाव के लिए तैयार है?

मेहरी मालेकी का मामला एक मिसाल है कि किस तरह शिक्षा, कानून, मानवता और वैश्विक नागरिकता एक ही प्लेटफॉर्म पर आ जाते हैं। भारत जैसे देश में, जो “वसुधैव कुटुम्बकम्” की सोच रखता है, वहां एक विदेशी छात्रा की शैक्षणिक यात्रा इस तरह रुक जाए, यह विचारणीय है।

हालांकि कोर्ट का फैसला नियमों के आधार पर है, लेकिन इसने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली अब प्रोफेशनल और समयबद्ध हो रही है – जहां भावनाओं से अधिक नियमों का पालन प्राथमिकता बन चुका है।

अब यह देखना होगा कि क्या मेहरी मालेकी भारत सरकार से शरणार्थी निवास प्राप्त कर पाती हैं या नहीं, और क्या उन्हें कहीं और अपना अकादमिक सपना पूरा करने का अवसर मिलेगा।


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