“Azerbaijan ka Bharat ke khilaf Pakistan ka support” एक ऐसा मुद्दा है जो ऑपरेशन सिंदूर के बाद भू-राजनीतिक गतिशीलता को उजागर करता है। पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद तुर्की, चीन और अजरबैजान ने पाकिस्तान का साथ दिया। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि अजरबैजान पाकिस्तान का समर्थन क्यों कर रहा है, भारत-अजरबैजान के रिश्ते क्या हैं, और अर्मेनिया के साथ भारत का क्या संबंध है। साथ ही, हम यह भी समझेंगे कि अजरबैजान की ताकत, उसका नाटो से संबंध, और सोवियत संघ से अलग होने की कहानी क्या है।

Azerbaijan ka Bharat ke khilaf Pakistan ka support
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एक अनसुना नाम, अजरबैजान
भारत में शायद बहुत कम लोग “अजरबैजान” नाम से वाकिफ होंगे। लेकिन हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों, खासकर पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद, अजरबैजान का नाम सुर्खियों में आया। इस ऑपरेशन के बाद, जब तुर्की और चीन जैसे देशों ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया, तब अजरबैजान ने भी पाकिस्तान के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की। यह सवाल उठता है: आखिर अजरबैजान भारत के खिलाफ क्यों खड़ा है? क्या कारण हैं कि यह छोटा सा देश, जिसके बारे में भारत में ज्यादातर लोग अनजान हैं, पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है और भारत का नहीं?
इस ब्लॉग में हम न केवल Azerbaijan Bharat ke khilaf Pakistan ka support के पीछे के कारणों को समझेंगे, बल्कि भारत-अजरबैजान और भारत-अर्मेनिया के रिश्तों, अजरबैजान की सैन्य ताकत, नाटो से उसके संबंध, और सोवियत संघ से उसकी आजादी की कहानी को भी उजागर करेंगे। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि भारत द्वारा अर्मेनिया को हथियार देने और अजरबैजान को हथियार देने से इनकार करने का इस तनाव में क्या योगदान है।
पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर: कहानी की शुरुआत
2024 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने भारत को झकझोर दिया। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों ने ली। भारत ने इसका जवाब ऑपरेशन सिंदूर के जरिए दिया, जिसमें भारतीय सेना ने सीमा पार कर आतंकी ठिकानों को तबाह किया। यह सर्जिकल स्ट्राइक न केवल भारत की ताकत का प्रतीक थी, बल्कि इसने वैश्विक भू-राजनीति में भी हलचल मचा दी।
जहां कई देशों ने भारत के इस कदम का समर्थन किया, वहीं पाकिस्तान ने अपने पुराने सहयोगियों—तुर्की, चीन, और अब अजरबैजान—का समर्थन हासिल किया। अजरबैजान का नाम इस सूची में देखकर कई भारतीय हैरान हुए। आखिर यह देश, जो भारत से हजारों किलोमीटर दूर है, भारत के खिलाफ क्यों खड़ा हुआ?
अजरबैजान Bharat Ke Khilaf Pakistan Ka Support: कारण क्या हैं?
1. तुर्की के साथ गहरा रिश्ता
अजरबैजान और तुर्की के बीच सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भाषाई संबंध बहुत गहरे हैं। दोनों देश तुर्की मूल के हैं और एक-दूसरे को “एक राष्ट्र, दो राज्य” के रूप में देखते हैं। तुर्की ने हमेशा अजरबैजान का समर्थन किया है, खासकर नागोर्नो-काराबाख विवाद में, जहां अजरबैजान का अर्मेनिया से संघर्ष है।
पाकिस्तान और तुर्की के भी मजबूत रणनीतिक रिश्ते हैं। तुर्की ने कश्मीर मुद्दे पर कई बार पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया है। ऐसे में, तुर्की के प्रभाव में अजरबैजान का पाकिस्तान का समर्थन करना स्वाभाविक है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की ने भारत की कार्रवाई की आलोचना की, और अजरबैजान ने भी उसी रास्ते पर चलते हुए पाकिस्तान के पक्ष में बयान जारी किए।
2. पाकिस्तान के साथ सैन्य और कूटनीतिक संबंध
अजरबैजान और पाकिस्तान के बीच सैन्य और कूटनीतिक रिश्ते पिछले कुछ दशकों में मजबूत हुए हैं। पाकिस्तान ने नागोर्नो-काराबाख विवाद में अजरबैजान का समर्थन किया, जबकि भारत ने इस मुद्दे पर तटस्थ रुख अपनाया। इसके अलावा, पाकिस्तान ने अजरबैजान को सैन्य सहायता और प्रशिक्षण प्रदान किया है।
पाकिस्तान और अजरबैजान के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास और हथियारों का व्यापार भी होता है। ऐसे में, जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान पर हमला किया, तो अजरबैजान ने अपने सहयोगी देश का साथ देना जरूरी समझा।
3. चीन का प्रभाव
चीन, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी है, ने भी ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की आलोचना की। अजरबैजान में चीन के बड़े निवेश हैं, खासकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत। चीन के प्रभाव और तुर्की के साथ मिलकर अजरबैजान ने भारत के खिलाफ रुख अपनाया।
भारत और अजरबैजान: रिश्तों की सच्चाई
भारत और अजरबैजान के बीच रिश्ते कभी बहुत मजबूत नहीं रहे, लेकिन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध जरूर हैं। भारत अजरबैजान से कच्चा तेल आयात करता है, और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होता है। हालांकि, कुछ कारणों से इन रिश्तों में तनाव आया:
- नागोर्नो-काराबाख विवाद में भारत का रुख: भारत ने इस विवाद में तटस्थता बनाए रखी, लेकिन अजरबैजान को लगता है कि भारत अर्मेनिया के करीब है। भारत ने अर्मेनिया को हथियार और सैन्य सहायता प्रदान की है, जिसे अजरबैजान ने अपने खिलाफ माना।
- भारत द्वारा हथियार देने से इनकार: हाल के वर्षों में, अजरबैजान ने भारत से हथियार खरीदने की इच्छा जताई थी। हालांकि, भारत ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया, क्योंकि वह अर्मेनिया के साथ अपने रणनीतिक रिश्तों को प्राथमिकता दे रहा था। इस फैसले ने अजरबैजान को नाराज किया और उसे पाकिस्तान के और करीब ले गया।
- पाकिस्तान का प्रभाव: पाकिस्तान ने अजरबैजान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने के लिए भारत के खिलाफ प्रचार भी किया। अजरबैजान के लिए, पाकिस्तान एक ऐसा सहयोगी है जो उसके क्षेत्रीय हितों का समर्थन करता है, जबकि भारत का रुख उसे अस्पष्ट लगता है।
भारत और अर्मेनिया: एक मजबूत दोस्ती
अजरबैजान का पड़ोसी देश अर्मेनिया भारत का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। भारत और अर्मेनिया के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्ते हैं। भारत में अर्मेनियाई समुदाय की मौजूदगी और दोनों देशों के बीच साझा लोकतांत्रिक मूल्य इन रिश्तों को और मजबूत करते हैं।
भारत-अर्मेनिया सैन्य सहयोग
भारत ने हाल के वर्षों में अर्मेनिया को स्वदेशी हथियार जैसे आकाश मिसाइल सिस्टम, पिनाका रॉकेट लॉन्चर, और अन्य सैन्य उपकरण प्रदान किए हैं। यह सहयोग नागोर्नो-काराबाख विवाद में अर्मेनिया की स्थिति को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है।
अजरबैजान ने भारत के इस कदम को अपने खिलाफ माना। अजरबैजान का मानना है कि भारत का अर्मेनिया को समर्थन उसके क्षेत्रीय हितों के खिलाफ है। यही कारण है कि अजरबैजान ने पाकिस्तान का समर्थन करके भारत को जवाब देने की कोशिश की।
अजरबैजान की ताकत: भारत के सामने कितना दम?
अजरबैजान एक छोटा लेकिन ताकतवर देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था तेल और गैस पर निर्भर है। इसकी सैन्य ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
1. सैन्य शक्ति
- सक्रिय सैनिक: लगभग 66,000
- रिजर्व फोर्स: 300,000
- आधुनिक हथियार: अजरबैजान ने तुर्की, रूस, और इजरायल से ड्रोन, मिसाइल सिस्टम, और अन्य हथियार खरीदे हैं। खासकर तुर्की के बायकर ड्रोन ने नागोर्नो-काराबाख युद्ध में अजरबैजान को बड़ी सफलता दिलाई।
- रक्षा बजट: लगभग 2.8 बिलियन डॉलर (2024)
2. भारत से तुलना
भारत की सैन्य ताकत अजरबैजान से कहीं ज्यादा है। भारत का रक्षा बजट 80 बिलियन डॉलर से ज्यादा है, और इसकी सेना विश्व की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है। हालांकि, अजरबैजान की ताकत क्षेत्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण है, खासकर तुर्की और पाकिस्तान जैसे सहयोगियों के साथ।
नाटो और अजरबैजान: क्या है संबंध?
अजरबैजान नाटो का सदस्य नहीं है, लेकिन वह नाटो के पार्टनरशिप फॉर पीस प्रोग्राम का हिस्सा है। इसके तहत अजरबैजान नाटो के साथ सैन्य अभ्यास और प्रशिक्षण में हिस्सा लेता है। तुर्की, जो नाटो का महत्वपूर्ण सदस्य है, अजरबैजान को नाटो के करीब लाने में अहम भूमिका निभाता है।
हालांकि, अजरबैजान की रूस के साथ भी साझेदारी है, जिसके कारण वह नाटो में पूरी तरह शामिल होने से बचता है। यह दोहरी नीति अजरबैजान को क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
सोवियत संघ से आजादी: अजरबैजान की कहानी
अजरबैजान 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के बाद, देश ने अपनी अर्थव्यवस्था को तेल और गैस के निर्यात पर केंद्रित किया। हालांकि, नागोर्नो-काराबाख विवाद ने अजरबैजान के लिए सबसे बड़ी चुनौती पेश की।
1990 के दशक में अर्मेनिया के साथ युद्ध में अजरबैजान को नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन 2020 में दूसरे नागोर्नो-काराबाख युद्ध में अजरबैजान ने तुर्की और पाकिस्तान की मदद से जीत हासिल की। इस जीत ने अजरबैजान को क्षेत्रीय ताकत के रूप में स्थापित किया।
निष्कर्ष: भारत के लिए सबक
Azerbaijan Bharat ke khilaf Pakistan ka support एक जटिल भू-राजनीतिक मुद्दा है, जो क्षेत्रीय हितों, सैन्य गठजोड़, और ऐतिहासिक रिश्तों का परिणाम है। अजरबैजान का पाकिस्तान का समर्थन तुर्की और चीन के प्रभाव, भारत के अर्मेनिया के साथ रिश्तों, और भारत द्वारा हथियार देने से इनकार जैसे कारणों से प्रेरित है।
भारत के लिए यह जरूरी है कि वह अजरबैजान जैसे देशों के साथ अपने रिश्तों को बेहतर करे और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखे। अजरबैजान भले ही छोटा देश हो, लेकिन तुर्की और पाकिस्तान जैसे सहयोगियों के साथ उसकी रणनीतिक स्थिति उसे महत्वपूर्ण बनाती है।
इस ब्लॉग के जरिए हमने न केवल अजरबैजान के भारत के खिलाफ रुख को समझा, बल्कि यह भी जाना कि भारत कैसे अपनी कूटनीति और सैन्य ताकत के दम पर वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
आपके विचार क्या हैं? क्या भारत को अजरबैजान के साथ अपने रिश्तों को बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए, या अर्मेनिया के साथ अपनी दोस्ती को और गहरा करना चाहिए? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं!
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