परिचय शरबत जिहाद विवाद: बाबा रामदेव : एक गिलास शरबत में तूफान

शरबत जिहाद विवाद

कल्पना करें कि एक साधारण गिलास शरबत, जो पीढ़ियों से भारतीय गर्मियों को ठंडक देता आया है, अचानक एक राष्ट्रीय विवाद का केंद्र बन जाए। 3 अप्रैल 2025 को योग गुरु से उद्यमी बने बाबा रामदेव ने एक वाक्यांश से हंगामा खड़ा कर दिया: “शरबत जिहाद”।

पतंजलि के नए गुलाबी शरबत के प्रचार के दौरान रामदेव ने हमदर्द के मशहूर रूह अफजा पर निशाना साधते हुए दावा किया कि इसकी कमाई मस्जिदों और मदरसों के लिए इस्तेमाल होती है। इसका जवाब तीखा और त्वरित था। मामला दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां 22 अप्रैल 2025 को रामदेव को कड़ी फटकार लगी।

शुरुआत: रामदेव का विवादित वीडियो

3 अप्रैल 2025 को बाबा रामदेव ने पतंजलि के नए गुलाबी शरबत को लॉन्च करने के लिए एक मंच संभाला। यह एक सामान्य उत्पाद लॉन्च हो सकता था, लेकिन रामदेव ने इसे विवाद का केंद्र बना दिया।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट किए गए 10 मिनट के वीडियो में रामदेव : उन्होंने न केवल अपने उत्पाद का प्रचार किया, बल्कि एक प्रतिद्वंद्वी पर निशाना भी साधा। हमदर्द के रूह अफजा का नाम लिए बिना, उन्होंने दावा किया कि एक निश्चित कंपनी की शरबत बिक्री से होने वाली कमाई मदरसों और मस्जिदों के निर्माण के लिए जाती है।

“अगर आप वह शरबत पिएंगे, तो मदरसे और मस्जिदें बनेंगी,” उन्होंने घोषणा की, इसके विपरीत पतंजलि के शरबत को प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह गुरुकुलों, पतंजलि विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा बोर्ड का समर्थन करेगा।

विवाद को भड़काने वाला वाक्यांश था “शरबत जिहाद”। रामदेव ने इस कथित फंडिंग को लव जिहाद और वोट जिहाद से जोड़ा, जिससे एक तीखा धार्मिक रंग दे दिया गया।

यह बयान न केवल हमदर्द के लिए, बल्कि व्यापक मुस्लिम समुदाय के लिए भी अपमानजनक माना गया, जिसने इसे सांप्रदायिक नफरत को भड़काने वाला बताया।

हमदर्द का जवाब: कानूनी जंग की शुरुआत

रामदेव के बयानों ने हमदर्द लेबोरेट्रीज, रूह अफजा की निर्माता कंपनी, को तुरंत कार्रवाई के लिए प्रेरित किया। हमदर्द ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें रामदेव के बयानों को मानहानिकारक और धार्मिक आधार पर हमला करार दिया।

कंपनी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में दलीलें पेश कीं। रोहतगी ने तर्क दिया कि रामदेव का बयान न केवल हमदर्द के ब्रांड को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि यह धार्मिक आधार पर सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देता है।

उन्होंने इसे “हेट स्पीच” की श्रेणी में रखा और कहा कि रामदेव, जो एक मशहूर हस्ती हैं, बिना किसी प्रतिद्वंद्वी की बुराई किए अपने उत्पाद को बेच सकते थे।

रोहतगी ने यह भी याद दिलाया कि रामदेव का इतिहास विवादों से भरा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने मामले का जिक्र किया, जिसमें रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को भ्रामक विज्ञापनों और एलोपैथिक दवाओं के खिलाफ बयानों के लिए सार्वजनिक माफी मांगने का आदेश दिया गया था। यह नया विवाद, रोहतगी के अनुसार, रामदेव की पुरानी प्रवृत्ति का हिस्सा था।

दिल्ली हाईकोर्ट की फटकार

22 अप्रैल 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई, जहां जस्टिस अमित बंसल ने रामदेव के बयानों पर कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा कि यह बयान “माफी लायक नहीं” है और इसने “कोर्ट की अंतरआत्मा को झकझोर दिया”।

जस्टिस बंसल ने स्पष्ट किया कि ऐसी टिप्पणियां सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाती हैं और रामदेव को ऐसी बातें “अपने दिमाग तक सीमित” रखनी चाहिए, न कि सार्वजनिक रूप से जाहिर करनी चाहिए।

पतंजलि की ओर से वकील राजीव नायर ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि सभी विवादित वीडियो हटा लिए जाएंगे। इसके जवाब में कोर्ट ने रामदेव को एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया, जिसमें वे वादा करें कि भविष्य में ऐसी बयानबाजी नहीं करेंगे।

कोर्ट का यह कड़ा रुख इस बात का संकेत था कि वह इस मामले को हल्के में नहीं ले रहा।

रामदेव का दूसरा वीडियो: आग में घी

विवाद बढ़ने के बाद, 12 अप्रैल 2025 को रामदेव ने एक और वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने अपने बयानों का बचाव किया। उन्होंने कहा, “मैंने एक वीडियो डाला, उससे सबको मिर्ची लग गई।

मेरे खिलाफ हजारों वीडियो बनाए गए। कहा जाने लगा कि मैंने शरबत जिहाद का नया शिगूफा छोड़ दिया। अरे, मैंने क्या छोड़ा, ये तो है ही। लव जिहाद, लैंड जिहाद, वोट जिहाद, बहुत तरह के जिहाद चलाते हैं ये लोग।” उन्होंने यह भी स्पष्ट करने की कोशिश की कि उनका इरादा किसी को आतंकवादी कहने का नहीं था, लेकिन उनकी टिप्पणी कि “उनकी इस्लाम के प्रति निष्ठा है” ने विवाद को और हवा दी।

यह वीडियो रामदेव के लिए और मुश्किलें खड़ी कर गया, क्योंकि इसने उनके मूल बयान को और अधिक उत्तेजक बना दिया।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं दो ध्रुवों में बंट गईं। कुछ ने रामदेव का समर्थन किया, उनका तर्क था कि उन्होंने केवल “सच्चाई” कही है। दूसरी ओर, कई लोगों ने इसे नफरत फैलाने वाला और खतरनाक बताया, जो सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है।

रूह अफजा का इतिहास: एक सदी की विरासत

इस पूरे विवाद में रूह अफजा का नाम बार-बार सामने आया, लेकिन बहुत कम लोग इस ब्रांड की समृद्ध विरासत से वाकिफ हैं। रूह अफजा की शुरुआत 1907 में दिल्ली में हुई थी, जब यूनानी हकीम हफीज अब्दुल मजीद ने इसे एक औषधीय शरबत के रूप में बनाया था। पीलीभीत, उत्तर प्रदेश में जन्मे मजीद ने दिल्ली के लाल कुआं बाजार में हमदर्द दवाखाना शुरू किया, जहां रूह अफजा ने अपनी जगह बनाई। “रूह अफजा” का अर्थ है “आत्मा को तरोताजा करने वाला,” और यह शरबत जल्द ही भारतीय घरों में लोकप्रिय हो गया।

आज, हमदर्द लेबोरेट्रीज एक प्रमुख कंपनी है, जिसकी वार्षिक आय 300 करोड़ रुपये से अधिक है। रूह अफजा न केवल भारत में, बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में भी एक पसंदीदा पेय है। इसकी सफलता का श्रेय इसके अनूठे स्वाद और गुणवत्ता के प्रति प्रतिबद्धता को जाता है। रामदेव के बयानों ने इस ऐतिहासिक ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, जिसे हमदर्द ने कोर्ट में चुनौती दी।

सामाजिक और धार्मिक प्रभाव

रामदेव के “शरबत जिहाद” बयान ने न केवल एक व्यावसायिक विवाद को जन्म दिया, बल्कि यह धार्मिक और सामाजिक तनाव को भी उजागर करता है। “जिहाद” शब्द का इस्तेमाल, खासकर नकारात्मक संदर्भ में, मुस्लिम समुदाय के लिए संवेदनशील माना जाता है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने 14 अप्रैल को इसकी कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “रामदेव अपने शरबत का खूब प्रचार करें, लेकिन रूह अफजा को जिहाद से न जोड़ें। अगर उन्हें ‘जिहाद’ शब्द से इतनी मोहब्बत है, तो पलटकर कोई उनके बारे में कह दे कि योग जिहाद, गुरु जिहाद, पतंजलि जिहाद, तो उन्हें कैसा लगेगा?”

यह बयान इस बात का प्रतीक था कि कैसे रामदेव की टिप्पणियों ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई। कई विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे बयान सामाजिक सौहार्द को कमजोर करते हैं और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं। दूसरी ओर, रामदेव के समर्थकों का तर्क है कि उन्होंने केवल एक “वास्तविकता” को उजागर किया, हालांकि उनके दावों का कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया।

पतंजलि का इतिहास: विवादों का साथी

रामदेव का यह विवाद उनकी पहली गलती नहीं है। पतंजलि, जो एक आयुर्वेदिक और उपभोक्ता सामान कंपनी है, ने पिछले कुछ वर्षों में कई विवादों का सामना किया है। भ्रामक विज्ञापनों से लेकर कोविड-19 के लिए अनधिकृत दवाओं के दावों तक, पतंजलि और रामदेव बार-बार कानूनी और सार्वजनिक जांच के दायरे में रहे हैं।

2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को उनके भ्रामक विज्ञापनों के लिए माफी मांगने का आदेश दिया था, जिसमें उन्होंने एलोपैथिक दवाओं को बदनाम किया था। इस बार, “शरबत जिहाद” विवाद ने पतंजलि की मार्केटिंग रणनीति पर सवाल उठाए, जो अक्सर प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाती है।

कोर्ट का फैसला: एक सबक?

दिल्ली हाईकोर्ट का सख्त रुख इस बात का संकेत है कि ऐसी उत्तेजक बयानबाजी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। रामदेव को न केवल वीडियो हटाने का आदेश दिया गया, बल्कि उन्हें भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से बचने का हलफनामा भी देना होगा। यह फैसला न केवल रामदेव के लिए, बल्कि अन्य सार्वजनिक हस्तियों के लिए भी एक चेतावनी है कि धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले बयान गंभीर परिणाम भुगत सकते हैं।

हालांकि, कुछ का मानना है कि यह मामला इतनी आसानी से खत्म नहीं होगा। सोशल मीडिया पर चल रही बहस और धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि यह विवाद अभी और तूल पकड़ सकता है।

निष्कर्ष: शरबत से सबक

“शरबत जिहाद” विवाद एक गिलास शरबत से कहीं ज्यादा है। यह भारत में धार्मिक संवेदनशीलता, कॉरपोरेट प्रतिद्वंद्विता और सार्वजनिक बयानबाजी की जिम्मेदारी का प्रतीक है। बाबा रामदेव, जिन्होंने योग और आयुर्वेद को घर-घर पहुंचाया, अब खुद को एक ऐसे विवाद में उलझा हुआ पाते हैं, जो उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। दूसरी ओर, हमदर्द का रूह अफजा, जो एक सदी से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है, इस विवाद के बाद और मजबूत होकर उभर सकता है।

यह कहानी हमें याद दिलाती है कि शब्दों का वजन होता है। एक गलत बयान न केवल व्यक्तिगत या व्यावसायिक नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि यह समाज को भी बांट सकता है। क्या रामदेव इस सबक को सीखेंगे, या यह विवाद उनकी कहानी में सिर्फ एक और अध्याय है? यह तो समय ही बताएगा।

अंत में: आपकी राय

इस विवाद ने पूरे देश में चर्चा छेड़ दी है। क्या आपको लगता है कि रामदेव का बयान एक सोची-समझी रणनीति थी, या यह सिर्फ एक गलती थी? क्या कोर्ट का फैसला पर्याप्त है, या और सख्त कार्रवाई की जरूरत है? अपनी राय कमेंट में साझा करें, और इस ब्लॉग को उन लोगों तक पहुंचाएं जो इस कहानी के बारे में और जानना चाहते हैं।


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